पर्यावरण प्रेमी बहू और ईको-फ्रेंडली कुशन

 "मम्मी जी, पूजाघर से हम वो मैट हटा देंगे। मैंने 100% इको-फ्रेंडली मेडिटेशन कुशन ऑर्डर कर दिया था। आज शाम तक डिलीवर हो जाएगा।"


छुट्टियों पर बेंगलुरु से घर आई गीता की बहू पिछले एक हफ्ते में न दर्जन भर चीजों को हेल्थ एंड इन्वायरन्मेंट के लिए हार्मफुल करार देते हुए घर से बाहर निकाल चुकी थी। आज पूजाघर में बैठने के लिए रखे सिंथेटिक मैट की बारी थी।

"सिंथेटिक मटीरियल अच्छे नहीं होते न। माइक्रो-फाइबर्स सांस से अंदर जाकर नुकसान करते हैं" , बहू ने लैपटॉप स्क्रीन से नजरें हटाए बिना एक भौंह को उचकाकर चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए कहा।

बहू बड़े चाव से बताती थी कि कैसे बेंगलुरु में उसने अपने अपार्टमेंट में 80% साजो-सामान इको-फ्रेंडली चीजों से रीप्लेस कर दिया है। अब वह गांव आई है तो यहां इस्तेमाल हो रहीं प्लास्टिक और सिंथेटिक फाइबर से बनी चीजें उसे अखर रही हैं।

पर्यावरण प्रेमी बहू का मानना था कि जितना हो सके, ईको-फ्रेंडली उत्पाद इस्तेमाल करने चाहिए।लेकिन बहू जिन चीजों को बाहर का रास्ता दिखा रही थी, उन चीजों को गीता बड़े चाव से बाजार की सबसे बड़ी दुकान से खरीदकर लाई थी। कुछ चीजें ऐसी भी थीं जो उसने मंडी के शिवरात्रि मेले से खरीदी थीं और उसका मानना था कि ऐसी चीजें तो आसपास के किसी शहर की दुकान में नहीं मिल सकतीं।

गीता को शौक से लाई गई चीजों को बाहर किए जाने का दुख तो था मगर साथ ही जिज्ञासा भी थी कि इनकी जगह आखिर शहर में पली-बढ़ी और मल्टी-नैशनल कंपनी में काम करते हुए देश-दुनिया घूम चुकी बहू ने कौन सी चीजें ऑर्डर की हैं।

खैर, गीता ने ऊन और सिलाइयों का लिफाफा उठाया और स्वेटर का नया डिजाइन सीखने पड़ोसियों के लेंटर की ओर चली गई जहां आस-पड़ोस की महिलाएं लंच के बाद धूप सेंकने और बतियाने के लिए जमा होती हैं।

शाम को गीता जब लौटी तो बहू अभी भी लैपटॉप पर काम कर रही थी। मुस्कुराते हुए बोली, "मम्मी जी, मेडिटेशन कुशन आ गया है। मैंने पूजाघर में रख दिया है।"

नई चीज देखने की चाहत तो भरपूर थी लेकिन गीता अपना उत्साह बहू को नहीं दिखाना चाहती थी। उसने बुनाई के सामान का लिफाफा सीढ़ियों पर रखा, हाथ-मुंह धोए और धीमी चाल से पूजाघर की ओर चल दी।

कुछ देर बाद वह पूजाघर से निकली और सीधी रसोई की ओर चली गई। उधर काम में जुटी बहू मम्मी की प्रतिक्रिया जानने के लिए बेताब थी। जब उसे किचन से बर्तनों की आवाज आने लगी तो वह हैरान हुई।

ऐसा क्या हो गया जो मम्मी ने नए मेडिटेशन कुशन को लेकर कुछ कहा नहीं? मैंने उन्हें पूजाघर की ओर तो जाते हुए देखा था, फिर भी उन्होंने बताया ही नहीं कि कुशन अच्छा है या बुरा। पहले तो उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया, हमेशा खुलकर बताती हैं कि कौन सी चीज अच्छी लगी कौन सी बुरी।

बहू अभी इसी सोच में डूबी थी कि उसे बाहर गाड़ी की आवाज सुनाई दी। उसका पति यानी गीता का बेटा अपने दोस्त से मिलकर घर लौटा था। पति के कमरे में दाखिल होते ही उसने अपनी परेशानी का सबब बता दिया। पति ने कहा, दिखाओ तो सही कि क्या ऑर्डर किया है तुमने।

बहू ने अपने स्मार्टफोन पर शॉपिंग ऐप खोला और अपने पति को वह ईको-फ्रेंडली मेडिटेशन कुशन दिखाया, जो पूजाघर में रख दिया गया था। पति ने वह कुशन देखा तो जोर-जोर से हंसने लगा।





बहू पूछती रही कि हुआ क्या है लेकिन पति था कि हंसता जा रहा था। बीच में बड़ी मुश्किल से हंसी पर काबू पाते हुए बोला, "ये बिन्ना* है। हमारे यहां इसे बिन्ना कहते हैं। मक्की के छिलकों से बुना जाता है। मुझे हंसी इस बात की आ रही है कि हम भी इसे इस्तेमाल करते थे। मम्मी खुद बनाती थीं। लेकिन हमारी शादी के समय मम्मी ने सारे बिन्ने उठाकर स्टोर में रख दिए थे। कह रही थीं- शहर से बहू आएगी, न जाने इन चीजों को देखकर क्या सोचेगी। बिन्नों और मिंजरों को हटाकर बैठने के लिए बाजार से सिंथेटिक मैट और प्लास्टिक के पटड़े ले आई थीं।"

उधर बहू को समझ नहीं आ रहा था कि इस बात को सुनकर हंसे या दुखी हो। चेहरे पर आधी सी मुस्कान लिए वह बिस्तर पर लोट-लोटकर हंस रहे अपने पति को देखती रही।
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*क्या होता है बिन्ना?
बिन्ना यानी मक्की के सूखे हुए छिलकों (Corn husk or ears) से बुना गया बिछौना। गांव में किसी भी चीज़ को यूं फेंका नहीं जाता था। मक्की के दाने अलग कर लिए तो उसके डंठल और छिलके भी काम के होते थे। खाली पड़े डंठल (गुल्लू) जलाने के काम आते थे तो छिलकों से कई तरह की चीज़ें बुनीं जाती थीं। इस तरह का बिन्ना बनाया जाता था, जो बैठने के काम आता था। बाद में पॉलिथीन बैग्स और इलेक्शन के दौरान आने वाले पॉलिथीन के झंडों से भी यह बनने लगा। मक्की के छिलकों से टोकरी, पूलें (जूते टाइप) और कई चीज़ें बनती थीं। मगर अब बंदरों से होने वाले नुकसान के डर से मक्की ही कम उगा रहे हैं। इसलिए बिन्ना वगैरह अब बहुत कम घरों में देखने को मिलता है।



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