सरकाघाट के शोभा राम जिन्होंने राजा और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ खड़ी कर दी थी फ़ौज
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प्रतीकात्मक तस्वीर: Meta AI |
"गुंडागर्दी कोई बहादुरी नहीं है। सरकाघाट के लोग ऐसी बेमतलब की दादागीरी के लिए नहीं बल्कि ग़लत के ख़िलाफ़ लड़ने की हिम्मत के लिए जाने जाते हैं।"
पालमपुर में रेडीमेड कपड़ों की एक पुरानी और नामी दुकान में आए एक बुज़ुर्ग अंकल ने यह बात उस शख़्स से कही थी, जो दुकानदार को बता रहा था कि सरकाघाट के लोगों का मंडी कॉलेज में कितना 'टेरर' हुआ करता था।
दुकानदार और वह शख़्स मंडी कॉलेज से पढ़े थे और बड़े दिनों बाद मिलने पर पुराने दौर की यादें ताज़ा कर रहे थे। इस दौरान वह बता रहा था कि कैसे उसने सरकाघाट के अपने साथियों के साथ मिलकर एक सरकारी जीप को ब्यास नदी में धकेल दिया था।
बिलिंग काउंटर में मेरे आगे खड़े एक बुज़ुर्ग अंकल काफ़ी देर से दोनों की बात सुन रहे थे। अचानक उन्होंने दोनों को टोकते हुए ये बात कही थी। अंकल का कहना था कि घाटू ही थे, जिन्हें काबू करने के लिए मंडी के राजा को अंग्रेज़ी सेना बुलानी पड़ी थी।
ये क़िस्सा आज से क़रीब 15 साल पहले का है। मगर उन बुज़ुर्ग की बात में कितना दम था, इसका पता मुझे बीते साल चला, जब एक मित्र ने सरकाघाट के शोभा राम के बारे में बताया। एक ऐसी शख़्यिसत, जिसने एक फौज खड़ी करके मंडी में कुछ दिनों के लिए ही सही, राजा का शासन ख़त्म कर दिया था।
जिज्ञासा बढ़ने पर मैंने शोभा राम के बारे में और जानकारियां जुटाना शुरू किया और हैरान रह गया कि हमने इतनी कमाल की शख़्सियत को कैसे भुला दिया।
1905 के भीषण भूकंप से मंडी में भी जानमाल का भारी नुक़सान हुआ था। उसके बाद के तीन-चार सालों में मौसम की मार ऐसी पड़ी कि किसानों की हालत खराब हो गई। उस वक़्त भवानी सेन मंडी के राजा हुआ करते थे। उनके वज़ीर थे- जीवानंद पाधा। वही सारा प्रशासनिक काम संभाला करते थे। कहा जाता है कि जितने करप्ट पाधा साहब थे, उतने ही उनके नीचे काम करने वाले कर्मचारी।
इसी बीच सरकाघाट के गधयाणी गांव में एक शख़्स थे मुरध्यान कनैत। उनके बेटे शोभा राम ब्रितानी सेना से रिटायर होकर लौटे थे। खुद भी खेती करते थे तो जानते थे कि लोगों को कितनी दिक्कत हो रही है। शोभा राम सेना में रहते हुए भारत के कई हिस्सों में तैनात रहे थे। आत्मविश्वास से भरे थे और पढ़े-लिखे होने के कारण नियम कायदों की जानकारी रखते थे। अपने तर्कों और दलीलों से वह स्थानीय सरकारी अधिकारियों की बोलती बंद कर दिया करते थे।
इस वजह से जल्दी ही शोभा राम को गांवों के साथ-साथ क़स्बाई इलाक़े मे चर्चित हो गए। उन्होंने चिट्ठियां लिखकर राजा और मंडी की ज़िम्मेदारी देखने वाले अंग्रेज़ अधिकारियों को बताया कि लोगों की हालत कितनी खराब है। मगर चिट्ठियां लिखने से कोई बदलाव नहीं आया उन्होंने लोगों को लामबंद करना शुरू कर दिया।
शोभा राम ने अपने साथ 20 लोग इकट्ठा किए और मंडी जा पहुंचे। राजा से मिलने का समय मांगा मगर राजा ने मिलने से इनकार कर दिया। वापस लौटकर शोभा राम ने महावीर दल बनाकर क़रीब 300 लोग जमा किए और फिर मंडी जा पहुंचे। फिर से राजा से समय मांगा गया। वज़ीर पाधा जीवानंद को पता था कि ये लोग राजा से उनकी ही शिकायत करेंगे। उन्होंने अपने भाई बलिराम से कहकर इन लोगों को बंदी बनाने की कोशिश की। शोभा राम और कुछ साथी वहां से बच निकले मगर कुछ को गिरफ़्तार कर लिया गया।
इसके बाद शोभा राम ने अंग्रेज़ अधिकारियों को तार भेजे, अपने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का कारण बताते हुए गिरफ़्तार किए लोगों को रिहा करने की मांग की। मगर अधिकारियों ने इस मांग को खारिज किया और गिरफ़्तारियों को जायज़ बताया।
इसके बाद जो हुआ, उसकी उम्मीद न तो पाधा जीवानंद को थी, न भवानी सेन को और न ही अंग्रेज़ अफ़सरों को। शोभा राम ने एक बड़ी हथियारबंद टीम तैयार कर दी। कुछ के पास बंदूकें थीं, कुछ के पास तलवारें, कुछ के पास खेती में इस्तेमाल होने वाले औज़ार।
इस हथियारबंद 'महावीर दल' ने मंडी की ओर कूच कर दिया। जहां-जहां से ये लोग गुज़रे, लोगों ने भव्य स्वागत किया। हर गांव से और लोग उनके साथ जुड़ते चले गए। मियां गोवर्धन सिंह ने 'हिमाचल प्रदेश का इतिहास' में तो यहां तक दावा किया है कि जब महावीर दल मंडी पहुंचा तो उसमें 20 हज़ार लोग शामिल थे।
रात को मंडी के जेल रोड पर मंदिर के पास जमा लोगों को संबोधित करते हुए शोभा राम ने कहा कि हमारी लड़ाई मंडी के लोगों से नहीं बल्कि भ्रष्ट वज़ीर और उसके कारिंदों से है और हम इन्हें हटाने आए हैं। कुछ ही समय में शोभा राम के सहयोगी क्रांतिकारी मंडी के मुख्य हिस्से में गए और वज़ीर पाधा जीवानंद समेत कई सरकारी अधिकारियों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया।
इतना सब होने के बाद राजा भवानी सेन राजमहल में नजरबंद कर दिए गए। उधर जालंधर के कमिश्नर कर्नल एच.एस. डेविस तक सूचना पहुंची तो उन्होंने खुद दो कंपनियों के साथ मंडी की ओर कूच कर दिया। उन्होंने कांगड़ा और कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर को भी सैनिक लेकर मंडी पहुंचने का आदेश दिया था। अंग्रेज़ अधिकारी पहले भी इन क्रांतिकारियों की बात सुनने को तैयार नहीं थे और अब तो वो उनके सामने हथियार लेकर खड़े थे।
दोनों ओर से कुछ देर तक गोलियां चलीं मगर आधुनिक हथियारों से लैस, एक प्रोफ़ेशनल सेना के आगे किसानों और आम लोगों का टिकना संभव नहीं था। कई युवकों की जान चली गई। आख़िरकार शोभा राम, उनके पिता औऱ कई साथियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। कई लोगों पर मुक़दमा चला और उनमें से 24 को सात से 14 साल की सज़ा सुनाई गई। बाक़ियों को तो लाहौर जेब में बंद किया गया, मगर शोभा राम को कालापानी भेज दिया गया।
ये विद्रोह बेकार नहीं गया। पाधा जीवानंद समेत कई अफ़सरों को बदल दिया गया। अंग्रेज़ों ने राजा के लिए नए सलाहकार नियुक्त किए। भ्रष्ट अधिकारियों पर मुक़दमे चले और कुछ को जेल भी भेजा गया। मगर काला पानी भेजे जाने के बाद शोभा राम का क्या हुआ, इस बारे में मुझे पता नहीं चल पाया। अफ़सोस कि आज उनके सरकाघाट में भी लोग उनके बारे में नहीं जानते हैं।
शोभा राम और उनके साथी पहाड़ी रिसायतों के किसानों और आम लोगों को राजाओं और अंग्रेज़ी शासन की नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का हौसला दे गए। यहां तक कि दो दशक बाद जब बिलासपुर में राजा आनंद चंद के कार्यकाल के दौरान अथाह टैक्स बढ़ा दिया था, तब वहां भी जनता बग़ावत पर उतर आई थी। उस विद्रोह के नेता मंडी की घटना से प्रेरित थे। मगर बिलासपुर के अधिकारियों ने तुरंत पंजाब से सैनिक बुलवा लिए थे, जिन्होंने कई महीनों तक गांव-गांव में जाकर बेरहमी से इस बग़ावत को कुचला था।
शोभा राम के बारे में तो हम इसलिए जान पाए कि उनका जिक्र इतिसाह की कुछ किताबों में है। उनके साथ और उनके जैसे कई लोग होंगे, जिन्होंने व्यापक जनहित में संघर्ष किया और अपने प्राणों की कुर्बानी दी। वो रजवाड़ों और अग्रेज़ों को ये समझा गए कि अब और मनमानी सहन नहीं की जाएगी। ऐसे में हमारा फ़र्ज़ है कि ऐसे लोगों की कहानियों को जिंदा रखें और उनसे प्रेरणा लेते रहें।
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