हिमकेयर योजना को बंद करना नहीं, इसे बेहतर बनाना है जरूरी

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कुछ मीडिया रिपोर्ट्स से जानकारी मिली है कि प्रदेश सरकार उस हिमकेयर योजना से प्राइवेट अस्पतालों को बाहर करने की तैयारी में है, जिसके तहत एक परिवार के पांच लाख तक के इलाज का खर्च सरकार उठाती है. हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और न ही सरकार ने ऐसा कोई आदेश जारी किया है. मगर अक्सर रिपोर्ट्स आती हैं कि पिछले इलाज का भुगतान न होने पर कुछ अस्पतालों ने हिमकेयर कार्ड को स्वीकार करना बंद कर दिया है.

मैं व्यक्तिगत तौर पर हिमकेयर योजना से लाभान्वित हुए कई लोगों को जानता हूं. इनमें से कुछ ऐसे हैं, जो हिमकेयर कार्ड से मिली कैशलेस इलाज की सुविधा से ही आज स्वस्थ और आत्मसम्मान भरा जीवन जी पा रहे हैं. वरना इनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि सरकारी अस्पतालों में इलाज न मिलने पर ये प्राइवेट अस्पतालों का रुख़ कर पाते. करना भी पड़ता तो शायद कर्ज लेना पड़ता.

सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं और व्यवस्थाओं की हालत क्या है, इस बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है. बड़े सरकारी अस्पतालों पर इतना भार है कि कई बार तो इमर्जेंसी ऑपरेशन्स के लिए भी महीनों बाद की डेट देनी पड़ती है. ऐसे में ज़रूरतमंदों के पास दो विकल्प रहते हैं- या तो नंबर आने तक चुपचाप रोग और यहां तक कि मृत्यु से संघर्ष करें या फिर कर्ज लेकर किसी प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाए.

कहा जा रहा है कि वर्तमान स्वास्थ्य सचिव को इस योजना के ऑडिट में कुछ खामियां मिली हैं. जैसे कि सरकारी कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया गया है, जबकि उन्हें हेल्थ पर हुए खर्च का रीइंबर्समेंट मिलता है. यह बात ठीक है, दोहरे लाभ नहीं मिलने चाहिए. यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि अगर वे कैशलेस ट्रीटमेंट करवाते हैं तो बाद में रीइंबर्समेंट नहीं करवाएंगे. या फिर उन्हें हटाया भी जा सकता है और बाद में उनके इलाज पर हुए खर्च का रीइंबर्समेंट जल्दी किया जाना चाहिए.

कहा जा रहा है कि कुछ अस्पतालों में गैरजरूरी सर्जरी करने के भी मामले सामने आए हैं। अगर इसे हिमकेयर योजना को निजी अस्पतालों से हटाने की वजह बताया जा रहा है तो यह समाधान नहीं है। अस्पतालों की गलतियों की सजा जनता को क्यों? जिन अस्पतालों ने ऐसा किया है, उन्हें न सिर्फ़ ब्लैकलिस्ट कीजिए, बल्कि उनपर तो फर्जीवाड़े का भी मामला दर्ज किया जाना चाहिए. और अब तक तो हो ही जाना चाहिए था.

प्रदेश सरकार को चाहिए कि इधर-उधर निरर्थक पैसा खर्च करने और बिना वजह रियायतें देने के बजाय हिमकेयर योजना को और मजबूत करे. महिलाओं को दिए जाने वाले 1500 रुपये से उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला. इतनी रकम से वे न तो कोई नया उपक्रम शुरू कर सकती हैं, न ही उनके या परिवार के जीवनस्तर में कोई क्रांति आ जाएगी. जबकि बीमारी या हादसे की स्थिति में उनके साथ-साथ उनके पूरे परिवार को भी इससे कहीं ज़्यादा लाभ मिलेगा.

इस योजना में जो खामियां हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए. जैसे हिमकेयर कार्ड के लिए नियम था कि राशन कार्ड के आधार पर बनेगा. राशन कार्ड में परिवार का मुखिया अगर सरकारी कर्मचारी है तो उसे शामिल किए बिना आप कार्ड बना ही नहीं सकते. तो इस तरह की तकनीकी दिक्कतें दूर की जानी चाहिए.

इसके अलावा, इस योजना का प्रीमियम आयकर देने वालों या सरकारी कर्मचारियों के लिए बढ़ा देना चाहिए. वे सक्षम हैं और ज्यादा प्रीमियत दे सकते हैं. उनके दिए प्रीमियम से भले ही कोई बहुत बड़ा कॉर्पस फंड नहीं जमा हो जाएगा, मगर फिर भी सरकार पर कुछ भार तो कम होगा.

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