अपने जिले या अपनी जाति से मंत्री होने पर खुशी का कारण क्या?

Courtesy: BPAC_Main

 

"जब मंत्री पूरे प्रदेश के होते हैं तो यह चिंता क्यों कि फ्लां जिले से तीन बन गए और फ्लां से एक भी नहीं?" यह कॉमेंट मेरे एक मित्र के फेसबुक पोस्ट पर आया था।

मित्र ने लिखा था कि कांगड़ा से एक ही मंत्री बनाया गया जबकि इस जिले ने ही कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाया है। उस पर उनके किसी मित्र ने ऊपर वाला कॉमेंट किया था। मेरे विचार से मेरे मित्र और उनके वह मित्र, दोनों ही नादान हैं। हालांकि दोनों की नादानी के कारण अलग हैं। मेरे मित्र को अफसोस था कि उनके जिले से मंत्री नहीं बना। वहीं उनके मित्र को आपत्ति थी कि यह अफसोस करने का विषय नहीं है क्योंकि मंत्री को पूरे प्रदेश का होता है, न कि जिले का।

कॉन्सेप्ट के लिहाज से मित्र के मित्र की बात तो सही है मगर वास्तविकता से परे है। ठीक उसी तरह, जैसे मेरे मित्र को इस बात से संतोष हो जाता कि उनके जिले से ज्यादा मंत्री बने हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अब मंत्री पूरे प्रदेश के मंत्री नहीं हुआ करते। मंत्री जिलों के भी नहीं हुआ करते। मंत्री होते हैं तो सिर्फ अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों के।

पिछले दो दशक में तो मैंने यही देखा है। मजाल है जो कोई मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर निकलता हो। कैबिनेट बैठक या विधानसभा के लिए राजधानी आते हैं और अगले ही दिन फिर से अपने विधानसभा क्षेत्र में। दुर्लभ मामलों में दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में तभी जाते हैं जब कोई अपना करीबी विधायक वहां बुलाए या फिर मजबूरी में कोई कार्यक्रम करना पड़ रहा हो। पिछली सरकार के कार्यकाल पर ही नजर दौड़ा लीजिए।

यह दुर्भाग्य है कि मंत्रियों में अपने महकमों को लेकर उतनी संजीदगी नहीं दिखती, जितनी दिखनी चाहिए। पूरे प्रदेश के लिए कोई नीति बनाने, योजना या परियोजना शुरू करने की भूख उनमें नहीं झलकती। लगता है कि सिर्फ पद संबंधित औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। हां, अपने निजी विषयों और अपने चुनावक्षेत्र को लेकर पूरी गंभीरता बरतते दिखते हैं।

जब कोई मंत्री अपने क्षेत्र के साथ पक्षपात करता है तो बाकी प्रदेश के साथ अपने आप ही भेदभाव हो जाता है। तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कौन से जिले से कितने मंत्री बने? इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी जाति से कितने मंत्री बने। यह किसी के लिए स्वाभिमान या निजी प्रसन्नता का विषय हो सकता है लेकिन इसका किसी क्षेत्र या जाति के विकास से कोई संबंध नहीं है। 

नई सरकार व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रही है। देखते हैं कि वह इस व्यवस्था या फिर कहिए कि मेरे पूर्वग्रहों को तोड़ पाती है या नहीं।

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