एक विशाल कद्दू की कथा



मैं सातवीं क्लास में था। स्कूल में टूर्नमेंट होने वाले थे। मॉर्निंग असेंबली में अपील की गई कि बच्चे अपने स्तर पर सहयोग करें, अपने घरों से अतिरिक्त कद्दू, ककड़ी वगैरह लेकर आएं। एलान किया गया कि सबसे बड़ा कद्दू लाने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा।

मैं सोचने लगा कि मैं भी बड़ा सा कद्दू दूंगा। घर पर उगे कद्दू देखे तो वो छोटे थे। पड़ोस में भैया के यहां बड़ा सा कद्दू लगा हुआ था। मैंने भाभी को पूरी बात बताई तो उन्होंने झट से बेल से कद्दू काटकर मुझे दे दिया।

अगली सुबह स्कूल जाने को तैयार हुआ। पापा उसी स्कूल में टीचर थे तो साथ ही जाता था। मगर कुछ किलोमीटर चढ़ाई-उतराई पार करके वहां पहुंचना होता जहां स्कूटर को पार्क किया होता था। तब गांव तक सड़क नहीं बनी थी। ऐसे में मैं पहले ही ब्रेकफस्ट करके उस जगह के लिए चल पड़ता और पापा बाद में चलकर भी तेज कदमों से मुझे छू लेते।

तो उस दिन भी रोज की तरह मैंने बस्ता टांगा और कद्दू को कपड़े के बड़े से झोले में डालकर जाने लगा। कद्दू इतना भारी कि बार-बार हाथ बदलना पड़ा। तभी अचानक झोले का स्ट्रैप अलग हो गया और कद्दू नीचे गिर गया। शुक्र था कि फटा नहीं। मगर उसे उठाना अब आसान नहीं था।

मैंने झोले से कद्दू निकाला और उसे बेल वाले हिस्से से पकड़कर कंधे पर रख लिया। खाली झोले का कुशन बनाकर रखा मगर कंधे दुखने लगे। पसीने से तर-ब-तर हो गया। दोनों कंधे दर्द से बेहाल हो गए मगर समय पर स्कूटर तक पहुंचा दिया।

पापा आए तो उसे स्कूटर में रखने की भी दिक्कत हुई। उस बड़े से कद्दू को मैं गोद में रखकर स्कूल तक ले गया। वहां मेस के पास पहुंचा तो सीनियर क्लास के लड़के खड़े थे जो बच्चों द्वारा लाई गई चीजों को रिसीव कर रहे थे और उनका नाम एक कॉपी में नोट कर रहे थे।

मैंने देखा कि वहां लगे कद्दुओं के ढेर में कोई भी मेरे लाए कद्दू के साइज के आसपास भी नहीं था। सामान रिसीव कर रहे लड़कों ने चर्चा की और तय हुआ कि नोटबुक में 'बड़ा सा कद्दू' लिखा जाए। उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरा नाम, सेक्शन और रोलनम्बर नोट किया। फिर मैं मॉर्निंग असेम्बली में शामिल होने चला गया।

पूरा दिन कराहते हुए गुजरा। शाम को घर पहुंचकर शर्ट उतारी तो कंधों में छाले आ चुके थे। टूर्नमेंट खत्म हो गए मगर कंधों का दर्द कम नहीं हो रहा था। मैं हर रोज इंतजार करता कि कब सबसे बड़ा कद्दू लाने वाले को सम्मानित किया जाएगा। मगर कोई घोषणा नहीं हुई।

एक दिन मैंने उन टीचर से पूछ ही लिया कि आप 'सबसे बड़ा कद्दू' लाने वाले को कब इनाम देंगे। उन्होंने कहा कि वो तो हमने ऐसे ही कहा था। ये कहकर वो और काम में बिजी हो गए। मगर मुझे बड़ा झटका लगा। पहली बार विश्वासघात टाइप का अहसास हुआ।

खैर, सबसे बड़ा कद्दू लाने का पुरस्कार मुझे मिल चुका था- कद्दू।

शिमला की सब्जी मंडी में आए इस 20 किलो के कद्दू की तस्वीर देख बचपन की घटना याद आ गई। वो कद्दू इस कद्दू से थोड़ा सा ही कम वज़नी रहा होगा।



Comments